अब तो बस कारोबारी रिश्ता है उसके और मेरे बीच,
कुछ उसे चाहिए तो वो मुझसे माँग लेती है,
कुछ मुझे चाहिए तो मैं उससे पूछ लेता हूँ|
प्यार तो जैसे हवा है!!!
अब तो जब मुझे दर्द होता है तो वो मुँह सिकोड़ लेती है,
उसे दर्द होता है तो मैं भी अनदेखा करता हूँ|
ज्यादातर ख़ामोशी छाई रहती है घर में,
गूंजती है तो कभी उसकी कर्कश आवाज़,
कभी कभी मेरा ऊँचा बोलना|
आजकल शाम को अँधेरा होने पर भी सुध नहीं रहती,
ज़िद रहती है दोनों में की अगला ऊठे और बत्ती जलाये,
कभी कभी तो अँधेरे में ही बैठे रहते है दोनों|
स्वादिष्ट खाना खाए तो जैसे ज़माना हो गया,
बस जो उसने पकया जैसे तैसे खा लिया,
हां विदेश में रह रहे हमारे बेटे के जन्म दिन में खीर ज़रूर बनता है|
त्योहारों के कोई मायने नहीं अब,
हा बेटे का फ़ोन ज़रूर आता है,
लेकिन ज्यादातर वो ही बातें करती है उससे,
मुझसे तो बस मुश्किल से एक दो बातें...|
अब तो आदत सी हो गयी है इस ख़ामोशी की,
मन तो करता है की दिल खोल कर बातें कर लूँ,
लेकिन ये दूरी है कि कम ही नहीं होती |
by हरीश शेट्टी, शीर्वा
No comments:
Post a Comment