चलो कहीं चलते है,
दुनिया के शोरशराबे से दूर, कहीं एकांत में,
अपने आप को जानने,
अपने आपको थोड़ा वक़्त देने,
अपने अंदर झाँकने,
अपने अंदर के जज्बे को जगाने,
अपने अंदर की बुराइयों को दफ़नाने,
चलो बैठते है किसी नदी के किनारे,
पूरी ताक़त से चिल्लाते है, अपनी हताशा को बाहर कर, अपने आप को शांत करते है,
डूबते हुए सूरज को देखकर, अपने दिमाग में चल रहे
हलचल को दरकिनार कर,
अपने अंदर नए उत्साह का संचार कर,
एक सकारात्मक सोच के साथ नए सूरज का स्वागत करते हैl
by हरीश शेट्टी शिर्वा
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