मैं एक मुरझायी हुयी फूल हूँ,
कोई मुझ पर ध्यान दे,
वो क्यों भला|
वैसे मेरे ज़िन्दगी का सफ़र कुछ बुरा नहीं था,
एक भले आदमी ने मुझे अपनों से जुदा कर देवता के चरण में चढ़ा दिया था,
भगवन का सनिध्या पा कर मैं खुश थी|
लेकिन मेरे मुरझाते ही पुजारीजी ने मुझे उठाकर कूड़े में डाल दिया,
कूड़े से पहुची मैं एक मुरझाए फूलों के एक ढेर में|
वहां मेरे और भी कुछ सहेलियां आखरी सांस ले रहे थे,
बातचीत हुईं उनसे,
चमेली बोली तू बहुत भाग्यशाली थी जो तुझे भगवन के चरणों के दर्शन हुए,
मुझे देख मैं एक कोठेवाली नचैनियां के बालों की शोभा बनी थी,
कुछ ही पल बीते थे एक ग्राहक ने आकर उसके साथ साथ मुझे भी बिस्तर में रौंद दिया|
सहेली चमेली की बात सुनकर मैं हैरान रह गयी,
सोचा वाकई मैं भाग्यशाली थी!!
एक और सहेली गुलाब ने अपनी दास्तां सुनाई,
मैं एक प्रेमिका को भेंट में मिली थी,
बहुत खुश हुई थी वो मुझे पाकर,
मैं भी कम खुश नहीं थी,
सोचा चलो,
ये मुझे जतन से रखेगी,
लेकिन अभी हम अपनी ख़ुशी समेट भी नहीं पाए थे कि लड़की के पिता ने उसे प्यार से मुझे चूमते हुए सहलाते हुए मुझसे बातें करते देख लिया,
गुस्से में आकर उनोन्हे मुझे उससे छीन कर अपनी मुट्ठी में मसल कर फ़ेंक दिया और मैं यहाँ पहुँची|
और एक सहेली ने बताया कि मैं देखने में तुम लोगो जैसी सुन्दर नहीं थी,
न ही मुझ में सुगंध था,
इसलिए मुझे किसी ने तोडा नहीं,
लेकिन मेरे अपने सब मुझसे बिछड़ गए,
बस इसी ग़म से मैं वहीँ पड़ी पड़ी सूख गयी,
बस फिर क्या था माली ने तोड़कर फेंक दिया और मैं इधर पहुंची|
कुछ बहुत से फूल खून से लथपथ पड़े थे,
उनमें से एक ने आंसू बहाते हुए कहा,
अब हमारी कहानी क्या सुनाऊ आप लोगो को,
बहुत दर्द है इसमें,
त्योहारों का माहौल था,
बहुत सुन्दर तरीके से हमे हर तरफ सजाया गया था,
जश्न हो रही थी,
हर मजहब के लोग उत्साह में थे,
लेकिन अचानक किसी बात को लेकर दो मजहब के लोगों में कहासुनी हुई,
बाद में यहीं बात बढ़कर उसने दंगों का शक्ल ले लिया,
खून की नदियां बही,
हम सब बेक़सूर भी खून में डूब गए,
अगले दिन सफाई कर्मचारियों ने हमें यहाँ लाकर डाल दिया|
उनकी बात सुनकर मैं दंग रह गयी!!!!
सोचती हूँ क्या मैं वाकई भाग्यशाली थी?
by हरीश शेट्टी, शीर्वा