खाये है बहुत से पाक पकवान हमने,
पर फीका लगता है स्वाद बचपन में खायी माँ के रोटियों के सामने,
क्या स्वाद था माँ के रोटियों में,
प्यार घुला होता था उसमे,
पहले अपने प्यारे प्यारे कोमल हाथों से आटा गूंधना,
उसके बाद गोल गोल बेलना,
और अंगीठी के सामने बैठकर उसे सेकना,
अजीब सी कलाकारी थी माँ के हाथों में,
नए नए तरीके थे माँ के पास रोटी खिलाने के,
कभी खिलाती थी शक्कर के साथ,
कभी गुड़ के साथ,
और कभी दूध में मिलाकर,
कभी कभी अधजली रोटी भी खिलाती थी,
पर स्वाद उसकी भी अनोखी होती थी,
शायद माँ उस वक़्त कुछ उदास बीमार सी रहती थी,
उस पर अंगीठी की आग और ताप बढ़ाती थी,
पर माँ उस हालत में भी रोटियां सेकती थी,
कहीं बार माँ को रोते हुए रोटी सेकते हुए भी देखता था,
पूछो तो टाल देती थी और अपना दर्द दबाती थी,
कहती थी बैठी हूँ अँगीठी की सामने,
इसलिए आँख से बह रहा है पानी,
उस दिन मिलता था स्वादिष्ट नमकीन रोटियां खाने में,
शायद माँ के आँसू मिले होते थे उसमे,
आती है नितदिन माँ की बहुत याद,
कैसे भूले भला त्याग की मूरत माँ के रोटियों का स्वाद|
by हरीश शेट्टी, शिर्वा